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हम सबको इस बात की अधिक से अधिक उत्कंठा होती है की क्या हमारे जीवन में अमीर  बनाने के योग है या नहीं।  मनुष्य के जीवन की यात्रा ही धन के पीछे होती है ।  हम इस तरह भी कह सकते हैं की हम धन के पीछे भागते है।  आध्यात्मिक रूप से हम कह सकते है सृष्टि के भ्रमण की गति और धुरी माता लक्ष्मी है।  भगवन विष्णु जो की जगत के पालन हार है हमें उनकी याद काम आती है हमारी सोच में  माँ लक्ष्मी विराजमान है।  और यह होभी  क्योंन बिना धन के जगत में कोई कार्य संभव नहीं है।  तो बुद्धिमान मनुष्य को हर प्रयत्न करके धन को अर्जित करना चाहिये    ।  कहा जाता है ज्ञान से मुक्ति मिलती है यह पूर्णतः सत्य है श्रीमद भगवद गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण इसी बात को समझते हुए कहते है  न ही ज्ञानं सदृशम पवित्रम इह विद्यते  इसका अर्थ होता होता हैं संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है। वास्तव में यही सत्य है हमें ज्ञान से ही पवित्रता प्राप्त होगी।  हम सबको     ज्ञान का अर्जन करना चाहिए  वही ज्ञान श्रेष्ट है जिससे धन में परिवर्तित किया जा सके।  हम सब नित्य नयी विधा की तरफ बढे।  क्योकि इस परिवर्तन शील जगत में कुछ भी स्थायी नहीं है।  न तो जीवन सत्य है न तो मृत्यु सत्य है हम एक अनंत यात्रा पर निकले पथिक है यह यात्रा कब शरू हुई और कब ख़त्म होगी यह हम नहीं जानते है।  परमात्मा  की अनत विभूतियों में से एक माँ लक्ष्मी है जिनके अस्तित्व को हम नकार नहीं सकते है पूरी सृष्टि को अनादि   काल से माँ की शक्ति चलायमान किये हुए है। 

मुझे उम्मीद है की आप मुझसे सहमत होंगे असहमति का तो  प्रश्न ही नहीं उठता अगर चाहे गृह्श्थ हो या सन्यांसी बिना धन के न तो परिवार चलता है नहीं आश्रम या आरण्यक ।  आने वाले दीपावली में हम कामना करते है की माँ लक्ष्मी की कृपा हम सब पर   बनी  पर रहे ।  हम इस वात को समझने का प्रयाश करते है।      मां की कृपा या यु कहे अनुकम्पा परिश्रमी और पुरुषार्थी व्यक्ति के ऊपर बनी रहती है ।  बिना परिश्रम के मात्रा कल्पना से हम जीवन में धन नहीं प्राप्त कर सकते है।  धन की शास्त्रकारो ने तीन गतियाँ बताई है  दान , भोग  और नाश।  धन की सर्वोत्तम गति है दान।  अगर हम इसका उपयोग अच्छे कार्यो के लिए करे तो निःसंदेह यह सर्वोत्तम गति है हम किसी देवालय , अनाथालय अस्पताल या फिर कि जरुरत मंद को दान कर दे।  सर्वोत्तम तो यह हो की हम  अपने जीवन में कम से कम  नित्य १ से लेकर १० रुपये ईश्वर अर्थ दान करने का अभ्यास करे , महीने के अंत में यह  ३००रुपये हो जाएंगे जिससे हम  सदसाहित्य जैसे श्रीमद भगवद गीता , मैं क्या हु, ईश्वर क्या है , परम पुजाय गुरूयदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ट पंडित श्रीराम शर्मा ने जीवन निर्माण के ३२०० पुस्तकों की रचना की है का हम वितरण करा सकते है।  याद रखिये भगववान के घर में भावनाओ का मूल्य होता है न क  क्रिया  का आप में से जिन्हे भी धन की उत्तम गति करनी है जरूर करे इस रूप में अगर कोई दुविधा या   आशंका  हो तो आप हमसे मदद ले सकते है।  हम आपको पूर्ण सहयोग करेंगे।  मनुष्य की जन्म कुण्डली उसके पिछले जन्मो का और आने वाले समय का लेखा जोखा करती है एक मनुष्य अपने जीवन में डझनवान होगा की नहीं इसका पूर्ण विचार उसके धन भाव और शुक्र की स्थिति  पर निरभर  करता है।  धन भाव कला स्वामी अगर बलवान है या अपने अच्छा भाव में है तो निश्चित रूप से व्यक्ति धनवान होगा।  कुंडली में विभिन्न प्रकारर के योग जैसे विपरीत राज योग , नीच भांग राज योग  हंस योग और इस तरह के अन्य योग व्यक्ति को धन वान बनाते ह।  कुंडली विश्लेषण के उपरांत निम्न  दशाओ में धनवान बनाने के योग होते है 

1 ) पंचम भाव शुक्र क्षेत्र (वृषभ-तुला) हो और उसमें ‘शुक्र’ स्थित हो तथा लग्न में मंगल विराजमान हो तो व्यक्ति धनवान होता है। 

(2) कर्क लग्न में चंद्रमा हो और बुध, गुरु का योग या दृष्टि पंचम स्थान पर हो।

(3) चंद्र-क्षेत्रीय पंचम में चंद्रमा हो और उत्तम भाव में शनि हो तो जातक धनवान होता हैयदि आप धनवान बनने का सपना देखते हैं, तो अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।

4 . यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।

5 . मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।

6 जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।

7  शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।

8 जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।

9दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं  के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।

 यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।

10 सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।

11 छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।

12 यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।

13 मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।

14. किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि मंगल ग्रह शुक्र ग्रह के साथ युग्म में स्थित हो तो ऐसे जातक को स्त्री पक्ष से धन की प्राप्ति होती है।

15. किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि मंगल ग्रह बृहस्पति ग्रह के साथ युति में हो तो ऐसे जातक को धन मिलता है

16. यदि अष्टम भाव का मालिक उच्च का हो तथा धनेश व लाभेश के प्रभाव में हों तो व्यक्ति को निश्चित रूप में अचानक धन लाभ होता है   

17. चंद्र एवम मंगल के एक साथ स्थित होने से चंद्र मंगल योग बनता हैं, जो धन का कारक है।

18. जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित है अर्थात शुक्र यदि कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित है तो कुंडली में मालव्य योग बनता है। यह भी सुख और धन देने वाला योग है।

19.मंगल का रूचक योग, बुध का भद्र योग, गुरु का हंस योग, और शनि के शश योग में भी व्यक्ति धनवान बनता है।

उपरोक्त वाते ज्योतिषीय दृष्टि कोण के आधार पर कही गयी है  जिनके विषय में शंका नहीं की जा सकती है।  हम सब को यह प्रयास करना वहहिये की मानव का जीवन एक अवसर है देवता बनाने का परम पूज्य गुरुदेव का युग निर्माण अभियान मनुष्य में देवत्वा का उदय एवं धरती पर स्वर्ग का अवतरण इसी घटना की प्रन्संगिकता है।  गुरुदेव कहते थे बेटा जो जैसा करता और सोचता  है वह वैसा ही बन जाता है। हम सब को अछि सोच अच्छे कर्म करने चाहिये तभी हम वास्तविक अर्थ में धनवान हो सकते है।  लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है इसका तात्पर्य यह है की यह जहा पहुचंती है उसके चित्त  को चंचल कर  देती है ।  पर जब यही किसी देव पुरुष के पास पहुचंती है तो वह इसका उपयोग जान कल्याण में करता है फल स्वरुप स्वर्ग का निर्माण होता है।  कहा जाता है की एक बार जगद्गुरु शकराचार्य भिक्षाटन पर निकले उन्होंने एक द्वार पर भिक्षाम देहि की आवाज लगाई अंदर से एक वृद्ध महिला निकली जिसने एक आवंला  भिक्षा में दिया उसके पास उस दिन के भोजन के लिए वह आवंला ही शेष था बदले में शंकराचार्य जी ने कनक धरा स्त्रोत का पाठ किया वह पर स्वर्ण की वर्षा हुई    लोगो ने पूछा यह कैसे संभव हुआ।  जगत गुरु ने कहा की उस दिन उसके पास केवल आवंला ही था भोजन के लिए उसने अपना सर्वस्व दे दिया  जिसका परिणाम स्वर्ण वारिश के रूप में हुवा।  आज भी बहुत लोग कनक धरा स्त्रोत का पाठ करते है पर उनके सामने स्वर्ण बारिश नहीं हुई।  कारण लोगो ने धन के मर्म को नहीं समझा है। माँ लक्ष्मी नित्य जगत के पालन हार भगवान् विष्णु की सह धर्मिणी के रूप में प्रतिष्ठित है।  हम अपने अंदर जगत के प्रति जितना प्रेम भाव लाएंगे और जो  हमारे पास पहले से है उसका उपयोग जगत हित में करेंगे तब जाकर माँ लक्ष्मी का सानिध्य हमें प्राप्त होगा।  इसमें हमें किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए ।

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