जय श्री कृष्णा शब्द से ग्रह संबध
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भगवान श्री कृष्ण नें गीता दी थी जो ग्रहों में शनी के सिद्धांतो पर आधारित है लेकिन इंसान गीता संदेश को यानि कर्म पथ को भूल कर शुक्र के पीछे भागने लगा दसवां घर शनी का है जो कर्म भाव है ओर दूसरा शुक्र का है जो धन भाव है ज़ब तक दसवां जागृत नहीं होगा तब तक दूसरा भाव फल नहीं देगा ये ज्योतिष सिद्धांत कहता है ओर साधारण तौर पर भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिना कुछ कर्म किये उसका फल नहीं मिल सकता छाती पर आम पड़ा है लेकिन उसको खाने के लिये हाथ तो ख़ुद के काम में लेने ही पड़ेंगे गुजरात कई बार प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ ओर फिर सम्भल गया कारण कि वहाँ के लोग अधिकतर जय श्री कृष्णा शब्द इस्तेमाल करते हैँ ओर कृष्ण कर्म संदेश देते हैँ जैसा इंसान शब्द बार बार इस्तेमाल करता है उसी प्रकार की ऊर्जा उसे सहयोग करने लगती है इसलिये कृष्णा का नाम लेते रहने से कर्म पथ पर चलने की हिम्मत आती है शनी ग्रह कृष्ण के परम भक्त है तो वो भी पूर्ण सहयोग करते हैँ ओर जहाँ कृष्ण है वहाँ राधे अपने आप आती है इसे लक्ष्मी स्वरूप भी कहा गया है ओर ग्रहों में शुक्र भी कहा जा सकता है क्योंकि शनी का रंग सांवला है वहीं शुक्र का पूर्ण सफ़ेद है इसलिये देखा जाये तो ग्रहों में शनी शुक्र को राधा कृष्ण कह सकते हैँ दोनों एक दूसरे के पूरक है दूसरे घर में शुभ ग्रह भी हो तो भी दसवें के बिना इंसान उसका भोग नहीं कर सकता वही बात आती है सामने पड़ा है लेकिन भोगने का कर्म तो ख़ुद को ही करना पड़ेगा दसवें घर को जागृत करने के लिये दीन हीन की सेवा करें क्योंकि कृष्ण जी नें सुदामा से मैत्री संबध रख कर ये उदाहरण दिया था वरना वो सुदामा को राजा भी बना सकते थे ओर हर दीन हीन के अंदर अपना वास होना बताया था!!